अगर किसी भी देश को मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस (Manufacturing Powerhouse) बनना है, तो उसके लिए सबसे जरूरी कदम है लोजिस्टिक्स (logistics) यानि सामान को निर्धारित स्थान पर पहुँचाना। किसी भी वास्तु की कीमत के निर्धारण में शिपिंग लागत (shipping cost)एक महत्वपूर्ण अंग है।
कोरोना के समय जब चीन में लॉकडाउन लगा तो पूरे विश्व की शिपिंग इंडस्ट्री एकाएक थम सी गयी। कंपनियों के आर्डर कई हफ्तों से महीनों लेट हो गए क्योंकि सामान लाने के लिए कंटेनर उपलब्ध नहीं थे। दुनिया में 95% से ज्यादा कंटेनर (container) चीन में ही बनते हैं।
ऐसे में चीन के साथ हुए विवाद में किसी दिन चीन भारत को या किसी भारतीय कंपनी को कंटेनर्स देना बंद कर दे, तो क्या होगा? हमारी सप्लाई चेन बर्बाद हो सकती है। सामान की कीमत कई गुणा बढ़ सकती है। भारत विदेशी बाजार में प्रतिस्पर्द्धी नहीं रह पायेगा। 2025 तक भारत को अपनी जरूरत के लिए ही 50,000 से ज्यादा कंटेनर्स चाहिए होंगे।
इस समस्या का सबसे आसान हल है स्वयं कंटेनर का निर्माण करना। अगर देश में ही ऐसे कंटेनर तैयार किए जाते हैं तो इस क्षेत्र में विदेशों से आयात पर निर्भरता कम होगी, साथ ही माल ढुलाई के लिए हमेशा पर्याप्त कंटेनर मौजूद रहेंगे, जिससे समय और पैसे दोनो की ही बचत होगी। इसी दिशा में काम करते हुए भारत सरकार जल्दी ही कंटेनर निर्माण के लिए PLI लाने जा रही है।
इसी ओर पहला कदम उठाते हुए भारत सरकार ने टाटा स्टील को कॉर्टन स्टील (Cortan steel) बनाने के लिए पहला लाइसेंस दे दिया है। कॉर्टन स्टील से ही शिपिंग कंटेनर्स बनाये जाते हैं.
यह कई हज़ार करोड़ डॉलर का बाजार है। अगर भारत इसमें अपनी पैठ बना लेता है, तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक जबरदस्त कदम होगा। नई इंडस्ट्री स्थापित करने से लाखों रोजगार के भी नए अवसर मिलेंगे और हम मजबूती से खड़े हों पाएंगे।