एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक महिला, जो एक पुरुष के साथ बगैर विवाह अपनी मर्ज़ी से रिश्ते में थी और उसके साथ रही, रिश्ता खराब होने के बाद बलात्कार का मामला दर्ज नहीं कर सकती। आपसी रजामंदी से बने रिश्ते खराब होने के बाद महिला धारा 376 के तहत रेप का केस नहीं दर्ज करा सकती है।

एक मुकदमे कि सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने आरोपी शिकायतकर्ता की ओर से दायर उस मामले में यह आदेश दिया, जिसमें आरोपी ने कोर्ट को बताया कि वह महिला के साथ चार साल तक लिव-इन रिश्ते में रहा और जब उसका रिश्ता शुरू हुआ तब वह महिला 21 साल की थी।

अंसार मोहम्मद नामक व्यक्ति ने राजस्थान उच्च न्यायालय के 19 मई के आदेश, जिसमें धारा 376 (2) (एन) के तहत अपराधों के लिए गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए उसके आवेदन को खारिज कर दिया था, को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में केस दायर किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय समाजिक जीवन में तेजी से जगह बना रहे लिव इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी करते हुए कहा कि एक महिला, जो किसी पुरुष के साथ अपनी मर्जी से रिश्ते में रही हो वो रिश्तों में खटास आने पर अपने पुरूष साथी के खिलाफ रेप का मामला नहीं दर्ज करा सकती है।

इस आदेश के साथ ही कोर्ट ने इस मामले में अंसार मोहम्मद, जिस पर बलात्कार, अप्राकृतिक अपराध और आपराधिक धमकी का आरोप लगाया गया था, को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा “हम वर्तमान अपील को स्वीकार करते हैं और उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हैं। अपीलकर्ता को सक्षम प्राधिकारी की संतुष्टि के लिए जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है।”

हालांकि, बेंच ने जमानत देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान आदेश में की टिप्पणियां केवल अग्रीम जमानत के आवेदन के संबंध में हैं। उसका केस की मेरिट से कोई संबंध नहीं है। इसके साथ ही बेंच ने यह भी कहा, “आरोपी अपीलकर्ता के खिलाफ चल रही जांच हमारे वर्तमान आदेश में की गई टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होंगी।”

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