सरकार देश में “राइट टू रिपेयर” कानून लाने के लिए तेजी से काम कर रही है. अगर उपभोक्ताओं को ये अधिकार मिल जाता है तो उनको एक साथ कई सारे फायदे होंगे। अब सवाल ये है कि ये राइट टू रिपेयर क्या है. इससे कैसे और क्या फायदा होगा.

मान लीजिए आपके पास कोई मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप है। कुछ समय के इस्तेमाल के बाद वो खराब हो जाता है। सामान्य रिपेयरिंग से उसको फिर से ठीक किया जा सकता है लेकिन जब आप उसे दुकान या सर्विस सेंटर पर ले जाते हैं तो कंपनी या दुकानदार कहता है कि ये ठीक नहीं हो सकता. इसका सामान या पुराना पार्ट आना बंद हो गया है। इसका कारण ये होता है कि कंपनियां नए मॉडल लॉन्च करती रहती हैं और उपभोक्ता से कह दिया जाता है कि पुराने वाले मॉडल का पार्ट ही आना बंद हो गया है। फिर ग्राहक को नया मॉडल खरीदना पड़ता है।

इस कानून के तहत, कार, ​​मोबाइल और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माताओं के लिए अपने उत्पाद के विवरण को ग्राहकों के साथ साझा करना अनिवार्य होगा, ताकि वे वस्तु निर्माताओं पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं या तीसरे पक्ष द्वारा उनकी मरम्मत करवा सकें।

आम तौर पर, निर्माता अपने डिजाइन सहित स्पेयर पार्ट्स पर मालिकाना नियंत्रण बनाए रखते है। इसके अलावा, कई उत्पादों के वारंटी कार्ड में लिखा जाता है कि निर्माताओं द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होने वाले सेंटर से उनकी मरम्मत करवाने से ग्राहकों को अपना वारंटी लाभ खो जाएगा। सरकार को लगता है कि मरम्मत प्रक्रियाओं पर इस तरह का एकाधिकार ग्राहक के “राइट तो चूज़” का उल्लंघन करता है। इसके अलावा जो वस्तु ठीक नहीं हो सकती वह इ-वेस्ट बन जाती है।

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि उसने ‘राइट टू रिपेयर’ के अधिकार पर व्यापक ढांचा विकसित करने के लिए अतिरिक्त सचिव निधि खरे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने भारत में LiFE आंदोलन (Lifestyle for Environment) के कांसेप्ट का शुभारंभ किया था। इसमें विभिन्न उपभोक्ता उत्पादों के पुन: उपयोग और रीसाइक्लिंग का कांसेप्ट शामिल है।

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