पिछले 25 वर्षों में चीन ने भारी आर्थिक प्रगति की है, जिसके फलस्वरूप वो अमेरिका की बाद दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इस प्रगति की वजह से चीन में निर्माण क्षेत्र में भारी निवेश हुआ और वहां पर बहुत बड़ी मात्रा में घर, मॉल और दफ्तरों का निर्माण हुआ। इसके लिए बड़ी संख्या में निर्माण से सम्बंधित लोहा, सीमेंट आदि कंपनियों को शुरू किया गया। साथ ही बड़ी संख्या में सिविल इंजीनियर और निर्माण मजदूर कार्यरत किये गए। लेकिन मांग से अधिक उपलब्धता के कारण रियल एस्टेट का यह बुलबुला फूट गया। तो एक बार ऐसा लगा कि चीन की अर्थव्यवस्था जाएगी।

लेकिन चीन ने समय रहते इसका समाधान ढूंढ लिया। उन्होंने ‘वन रोड वन बेल्ट’ परियोजना का आरम्भ किया जिसके माध्यम से चीन अपने आप को पूरे विश्व के साथ सड़क के माध्यम जोड़ना चाहता है। इस योजना में चीन से लेकर विश्व के विभिन्न देशों तक सड़क का निर्माण किया जाना है। साथ ही चीन इस सड़क के आसपास बड़ी मात्रा में इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने जा रहा है। जिसमे सड़कों और बंदरगाहों का निर्माण किया जाएगा।

इस काम के लिए चीन विकासशील देशों को कर्ज दे रहा है। परन्तु इसमें भी उसने अपनी चालबाज़ियों को घुसा दिया। विकासशील देशों को क़र्ज़ देते समय चीन ने यह शर्त जोड़ दी कि दिए हुए क़र्ज़ के तहत जो भी निर्माण कार्य होगा उस काम कि सिर्फ चीनी कंपनियां ही करेंगी। इस कार्य के लिए कोई टेंडर नहीं होगा और लागत आकलन, डिज़ाइन इत्यादि भी चीन कंपनियां बनाएंगी। इन सभी परियोजनओं की लागत को बहुत हो बड़ा चढ़ा कर बताया गया जैसे कि एक श्रीलंकाई सांसद के मुताबिक चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह की लागत को तीन गुना कर दिया है।

इन परियोजनाओं को स्वकृत करने के लिए विभिन्न देशों के भ्रष्ट राजनेताओं पर पैसे लेने के आरोप भी लगे हैं। इसके साथ इन परियोजनओं के लिए आवश्यक सीमेंट, इंजीनियर, श्रमिक चीन से ही लाए जा रहे हैं। इस से चीन में सीमेंट और पोलेड कंपनियों को फिर से ग्राहक मिल रहे हैं। इंजीनियरों और कर्मचारियों को भी काम मिल गया है। इन परियोजनाओं के लिए ऋण का भुगतान भारी ब्याज के साथ किया गया है। ऋण कि शर्तों के अनुसार ऋण लेने वाले देश अगर समय पर इस पैसे का भुगतान नहीं कर पाए तो चीन उनके बंदरगाहों और विभिन्न निर्माण क्षेत्रों पर कब्जा कर सकता है। इन बंदरगाहों और सड़कों का इस्तेमाल चीन अपने सैन्य इस्तेमाल के लिए कर सकता है।

कोरोना के बाद चीन के सामने अब 3 बहुत गंभीर समस्याएं हैं

1. कोरोना के कारण विशव अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने से चीन कि अर्थव्यवस्था भी कमज़ोर हुयी है जिस वजह से वहां पर आंतरिक रूप से अशांति पैदा हो रही है। लोगों के पास न खाना है, न काम है और न वेतन है

2. कई देशों ने ऋण की पेशकश को अस्वीकार करना शुरू कर दिया है क्योंकि वे समझने लगे हैं कि चीन जिस जाल में उन्हें फ़साने कि कोशिश कर रहा है वो मौत का जाल है और इसके सबसे अच्छे उदाहरण पाकिस्तान और श्रीलंका हैं।

3. चीन के सभी जहाज, विमान और हथियार रिवर्स इंजीनियरिंग पर बने हैं। उनमे कोई भी इनोवेशन नहीं है और ना ही उनका किसी जंग में टेस्ट हुआ है। इसके साथ ही चीन की सेना के सैन्यकर्मियों को किसी युद्ध का अनुभव नहीं है। ज्यादातर सैन्यकर्मी अनिवार्य सेवा कि वजह से ही सेना में कार्य कर रहे हैं। वो एक लड़ाकू फ़ौज की तरह से लड़ नहीं सकते।

चीन सेना युद्ध के योग्य नहीं है। चीन भारत के साथ टकराव सिर्फ अपने आंतरिक मुद्दों से अपने लोगों का ध्यान हटाने के लिए दिखावा कर रहा है। चीन सिर्फ एक कागजी ड्रैगन है। वे हमारी सेना से नहीं लड़ सकता। 1962 से अब तक बहुत कुछ बदल चूका है। अब सैन्य हथियारों का नहीं अर्थशास्त्र और कूटनीति का वक़्त है।

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