आजतक कैंसर को अधिक आयु के लोगों की बिमारी जो कि धूम्रपान, कुछ केमिकल्स की वजह, रेडिएशन के कारण या किसी अन्य की वजह से होने वाला रोग माना जाता था।

परन्तु हाल में ही हुई एक रिसर्च में यह सामने आया है की किशोरों और युवा वयस्कों में शुरुआती जीवन में आहार, जीवन शैली, मोटापा, पर्यावरण और माइक्रोबायोम के संबंध में भारी बदलाव के कारण कई प्रकार के कैंसर की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है।

पिछले कई दशकों में, 50 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों में कैंसर जैसे कि स्तन कैंसर, कोलोरेक्टम कैंसर, एंडोमेट्रियम कैंसर, एसोफैगस का कैंसर, पित्ताशय की थैली का कैंसर इत्यादि की घटनाओं में वैश्विक स्तर पर वृद्धि हुई है। 50 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों में विभिन्न अंगों के कैंसर की घटनाएं 1990 के दशक से दुनिया के कई हिस्सों में बढ़ रही हैं।

हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, बोस्टन के रिसर्चस के नेतृत्व में हुई एक रिसर्च जो कि नेचर रिव्यू क्लिनिकल ओन्कोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुई है, में कहा गया है कि युवाओं और किशोरों का कैंसर कारक तत्वों से एक्सपोज़र बहुत जल्दी, छोटी आयु में ही हो रहा है। इसका कारण पिछले कुछ वर्षों में हुए आहार, जीवन शैली, मोटापा, पर्यावरण और माइक्रोबायोम में में हुए परिवर्तन हैं जो कि व्यक्ति के जीनोम के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं।

दुनिया के तमाम देशों ने पारंपरिक खानपान छोड़कर फास्ट फूड अपना लिया है। इसकी वजह से कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। ज्यादा तला-भुना और पुराने या बार-बार गर्म किए गए तेल में बनी चीजों से कैंसर होता है। प्लास्टिक के प्लेट में खाने और ज्यादा मीट खाने से भी कैंसर का खतरा बढ़ता है। कोल्ड ड्रिंक और ऐसे ही दूसरे ड्रिंक, जिसमें ज्यादा सोडा और मीठा डाला जा रहा है, कैंसर की आशंका बढ़ाते हैं।

तनाव भरी जीवनशैली, व्यायाम, योग, खेल जैसी चीजों के लिए वक़्त ने देने से शारीरिक गतिविधि की कमी पेट के कैंसर को न्योता है। इसे अलावा जो लोग लगातार नाइट शिफ्ट में काम कर रहे हैं, उन्हें भी कैंसर का खतरा बढ़ा है।

रिसर्च में शामिल लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि जल्द शुरू होने वाली कैंसर महामारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और खान पान, जीवन शैली, पर्यावरण आदि में सुधार करना हमारा तात्कालिक लक्ष्य होना चाहिए। इनसे शुरुआती और बाद में शुरू होने वाले कैंसर दोनों के बोझ को कम करने की संभावना है।

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