डायबिटीज की बीमारी आज के समय में आम हो गई है। इस बीमारी की चपेट में हर वर्ग के लोग आ रहे हैं। डायबिटीज की वजह से लोगों में उच्च रक्तचाप और कई अन्य बीमारियां जैसे ही ह्रदय रोग की समस्या आदि होने लगी है।
वहीं डायबिटीज के अगर इलाज की बात करें तो यह बेहद ही खर्चीला है। पीजीआइ चंडीगढ़ में डायबिटीज के इलाज पर एक शोध किया है। यह शोध पीजीआइ ने डायबिटीज से पीड़ित बच्चों पर किया है यह बच्चे हैं जिन्हें टाइप वन डायबिटीज है।
शोध के मुताबिक पीजीआइ ने टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित 380 बच्चों पर शोध किया तो यह तथ्य सामने आएगी इनमें से 88.4 फीसद बच्चों के माता पिता डायबिटीज के इलाज के लिए पैसा जुटाने में असफल हैं। यहां तक की टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित इन बच्चों के अभिभावकों में से 34.5 फीसद अभिभावकों ने अपने बच्चों के इलाज के लिए अपने जेवरात तक गिरवी रखकर बैंक से लोन लिया है।
पीजीआइ के प्रोफेसर और इस शोध के शोधकर्ता प्रोफेसर देवीदयाल ने बताया कि टाइप वन डायबिटीज का इलाज इस वजह से महंगा है क्योंकि उसके इलाज में नई तकनीक और हाई ट्रीटमेंट का इस्तेमाल किया जाता है। जो कि समय-समय पर बदलता रहता है। इस वजह से टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित बच्चों के इलाज में खर्चा ज्यादा आने के कारण अभिभावक उनके इलाज में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
एक परिवार की कमाई का 49 फीसद इलाज में खर्च
प्रोफेसर देवी दयाल ने बताया कि टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित मरीज या अन्य डायबिटीज से पीड़ित मरीज को एक इंसुलिन इंजेक्शन में करीब 28965 रुपये का खर्च आता है। इसी तरह ब्लड ग्लूकोस मानिटरिंग पर 21576 का खर्च आता है। इसके अलावा एचबीए1सी टेस्ट के लिए 5069 रुपये लगते हैं। अस्पताल के अन्य खर्चों में 27495 खर्च हो जाते हैं। ऐसे में केस स्टडी के जरिए पता चला कि एक सामान्य परिवार की महीने की कमाई का 49 फीसद खर्च बच्चे के डायबिटीज के इलाज में खर्च हो जाता है।