कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि बिना किसी सबूत के पत्नी द्वारा पति पर नपुंसकता का आरोप मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आएगा। हाईकोर्ट ने कहा, ऐसे मामले में पति अपनी पत्नी से अलग होने के लिए याचिका दायर कर सकता है।
न्यायमूर्ति सुनील दत्त यादव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने धारवाड़ के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका के संबंध में यह आदेश दिया, जिसमें धारवाड़ परिवार न्यायालय द्वारा तलाक देने की उसकी याचिका को खारिज करने के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।
अदालत ने कहा, “पत्नी ने आरोप लगाया है कि उसका पति शादी के दायित्वों को पूरा नहीं कर रहा है और यौन गतिविधियों में असमर्थ है। लेकिन, उसने अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया है।” कोर्ट ने माना कि ये निराधार आरोप पति की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं। पीठ ने कहा कि पति द्वारा बच्चों को जन्म देने में असमर्थ होने का आरोप मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में आता है।
पति ने कहा है कि वह चिकित्सकीय परीक्षण के लिए तैयार है। इसके बावजूद पत्नी मेडिकल टेस्ट से अपने आरोप साबित करने में नाकाम रही है।
याचिकाकर्ता ने महिला से 2013 में विवाह किया था। उसके कुछ माह बाद ही उसने धारवाड़ की फैमिली कोर्ट में तलाक की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। उसका दावा है कि शुरुआत में उसकी पत्नी ने वैवाहिक जीवन के लिए सहयोग किया, लेकिन बाद में उनका व्यवहार बदल गया। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने बार–बार अपने रिश्तेदारों से कहा कि वह संबंध बनाने में असमर्थ है और वह इससे अपमानित महसूस करता है। इसी पृष्ठभूमि में उसने पत्नी से अलग होने की मांग की।
अदालत ने याचिकाकर्ता को 8,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का भी आदेश दिया है जब तक कि महिला फिर से शादी नहीं कर लेती।